शांत स्वभाव और निर्मल हृदय की चित्रकार उमा शर्मा को दिल्ली के 'ललित कला अकादमी' की दीर्घा नं. 6 में मैंने बेहद प्रसन्न देखा तो मेरा मन भी बाग-बाग हुो गया। शायद ऐसा दीर्धा में आये कला प्रेमियों  की टोलियों को देख कर हुआ होगा। इस दीर्घा में उमाजी के चित्रों की प्रदर्शनी लगाईं गई थी। 

हमारे देश की इस प्रसिद्ध आर्ट गैलरी में एक कलाकार की कृतियों को करीने से सजाने का सौभाग्य चंद उम्दा कलाकारों के नसीब में ही होता है और ऐसी किसी प्रदर्शनी का अवलोकन करना, कलाकार से करीब से  मिलना, उससे तफ्सील से गुफ्तगू करना मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के लिए कम ख़ुशी का अवसर नहीं था । 

दरअसल, बिना कूची और रंग के कागज की कतरनों से बनी बोलती तस्वीरों को जन्म देने वाली मथुरा की उमा शर्मा से मैं पूर्व में मिल चुका हूँ और उनकी इस अदभुत कला के मर्म को जानकार हतप्रभ हो चुका हूँ लेकिन मथुरा में 'इंटेक' के संयोजक दीपक गोयल की सूचना मात्र  पर दिल्ली के 'ललित कला अकादमी' जा पहुंचा। नाटक, नृत्य, चित्र आदि कलाओं और कलाकारों को शाबासी, हिम्मत और हौसला देने वाले इस सरकारी संस्थान की दीर्घा नंबर ६ में उमा जी की दर्शकों को मूक निमंत्रण देती कलाकृतियां एक खास अंदाज़ में  दीवारों पर सजी थीं।      

रंगबिरंगे छोटे बड़े पांच दर्जन चित्र ब्रज की सभ्यता, संस्कृति और जनजीवन की कहानी बयां कर रहे थे। 
 
1950 में जन्मी चित्रकार उमा शर्मा दीर्घा के एक कोने से दूसरे कोने में सजे अपने चित्रों के सामने खड़े होकर जिज्ञासु दर्शकों को समझा रहीं थी कि इन चित्रों को रद्दी कागज के तिनकों को फेबिकोल से चिपका कर बनाया गया है।  एक दर्शक ने पूछा क‍ि आप पेंसिल से पहले चित्र की आउट लाइन बनाती होंगी? इस पर उमाजी ने मधुर मुस्कान बिखरते उत्तर दिया - 'नहीं , जिस चित्र को बनाती हूँ उसकी कल्पना मेरे मानस में तब तक रहती है जब तक चित्र पूरा नहीं हो जाता।''
चित्रकार के उत्तर से हतप्रभ दर्शक चित्रों की नुमाइश को एकटक निहारते और चित्रकार के श्रम और उनकी कल्पना की उड़ान की कल्पना कर कह उठते... "वाह"।

मथुरा में कला, संस्कृति, नाटक, साहित्य आदि क्षेत्रों में काम करने वाले संगठन भले ही उमा जी की विलक्षण चित्रकारी से अपरिचित हों लेकिन मुंबई, जयपुर के बड़े चित्रकार और संगठन उमाजी की प्रतिभा के कायल हैं। मुंबई की ''जहांगीर आर्ट गैलरी ''  में एक चित्रकार को सामान्यतः अपने चित्रों की प्रदर्शनी के लिए आवेदन देने के बाद उसे चार-पांच साल तक इन्तजार करना होता है लेकिन उमा जी ने जैसे ही अपने चित्रों का संकलन डायरेक्टर को दिखाया, उन्हें तत्काल इजाज़त दी गई थी, ऐसा ही दिल्ली में हुआ।  

एक बार फिर दिल्ली की  इस प्रसिध्द गैलरी में उमा जी के no  brush, no  paint चित्रों का प्रदर्शन हुआ, जो क‍ि खूब सराहा जा रहा है। 

दिल्ली के श्याम लाल कॉलेज के छात्रों की एक टोली दीर्घा में लगे एक विशाल चित्र में दर्शाये गए विषय को समझने की कोशिश कर रहे थे, मैंने उनकी मदद करते हुए उन्हें बताया क‍ि ''मित्रो, यह चित्र मथुरा में बहने वाली यमुना महारानी का है। चित्र में अनेक नावों में बैठी महिलायें यमुना को रंगबिरंगी साड़ी पहना रही हैं। मथुरा में ऐसा एक उत्सव के रूप में किया जाता है, इसे 'चुनरी मनोरथ ' कह कर पुकारा जाता है।'' 

अपरि‍चित दर्शकों के सामने मैंने आगे कहा क‍ि ''जिसप्रकार  एक चिड़िया तिनका-तिनका बीनकर लाती है और आकार देती है एक ऐसे घौंसले को जिसे देखने वाले लोग इस बेजुवान परिंदे की कलाकारी को देख हैरत में पड़ जाते हैं, बिलकुल ऐसे ही मथुरा की इस  चित्रकार  उमा शर्मा के चित्रों की विलक्षण कहानी है।''

छात्र दीर्घा से बाहर जाने से पहले चित्रकार उमाजी के पास गए और बात कीं। एक सप्ताह चलने वाली इस विलक्षण  प्रदर्शनी का उद्घाटन 'इंटेक' के चेयरमैन एल के गुप्ता ने किया। 
प्रस्‍तुति- डॉ. अशोक बंसल 

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