सोलह कला अवतार महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्‍ण की जन्मस्थली में कल मतदान होना है। मथुरा में प्रमुख प्रत्याशियों के तौर पर दो बार की सांसद हेमा मालिनी के अतिरिक्त इंडी गठबंधन की ओर से कांग्रेस के मुकेश धनगर तथा बहुजन समाज पार्टी के चौधरी सुरेश सिंह मैदान में हैं। सुरेश सिंह से पहले बसपा ने पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को अपना उम्मीदवार घोषित किया था किंतु फिर उनका टिकट काटकर सुरेश सिंह को दे दिया। 
जाट समुदाय से होने के बाद भी सुरेश सिंह की उम्‍मीदों पर रालोद नेता जयंत चौधरी पहले ही एनडीए का हिस्‍सा बनकर पानी फेर चुके थे। अब वह मुख्‍य मुकाबले में तो हैं लेकिन जीत के दावेदार नहीं, क्‍योंकि वह कनवर्टेड बसपाई हैं। 
इंडी गठबंधन से कांग्रेस के उम्मीदवार मुकेश धनगर तो जैसे चुनाव लड़ने की लकीर पीट रहे हैं। कांग्रेसी भी शायद इस सच्‍चाई से वाकिफ हैं इसलिए उनके साथ न तो कोई कद्दावर कांग्रेसी खड़ा नजर आया, और न किसी कांग्रेसी नेता ने उनके समर्थन में चुनावी रैली या जनसभा की। वह अकेले ही कांग्रेस का झंडा लेकर चुनावी वैतरणी में हाथ-पैर जरूर मार रहे हैं।     
कांग्रेस ने अपने एक कार्यकर्ता मुकेश धनकर को मथुरा से तब मैदान में उतारा, जब उसके बाकी तमाम नेताओं ने हाथ खड़े कर दिए अन्यथा इससे पहले पूर्व विधायक प्रदीप माथुर तथा उद्योगपति महेश पाठक को चुनाव लड़ाने की चर्चाएं गर्म थीं। इन दोनों के मना करने पर बड़ी तेजी से अंतर्राष्‍ट्रीय ख्याति प्राप्‍त भारतीय बॉक्सर बिजेन्दर सिंह का नाम सामने आया, लेकिन अचानक उन्‍होंने भी भाजपा का दामन थाम दिया। 
उधर, अपना टिकट कटने को ब्राह्मणों के अपमान से जोड़कर उपमन्‍यु ने कल बसपा को 'बॉय-बॉय' बोल दिया और 'कमल का पटका' पहनकर भाजपाई हो गए, जबकि वो 1999 में बसपा की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके थे। 
 जहां तक सवाल मथुरा से ही लगातार दो बार चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य बनने वाली अभिनेत्री हेमा मालिनी का है तो ब्रजवासियों के लिए वो पिछले 10 सालों में 'ड्रीम गर्ल' ही बनी रहीं। मथुरा की आम जनता ने उन्‍हें कभी अपने बीच नहीं पाया, अलबत्ता वह 'ऑकेजनली' आती रहीं। 
कहने के लिए उन्‍होंने वृंदावन (मथुरा) में अपना आवास बना रखा है लेकिन वहां वह कभी आम जनता से नहीं मिलतीं। कुछ खास लोग उनके घर की चौखट तक पहुंचकर खुद को धन्य जरूर समझ लेते हैं। 
बहरहाल, अब जबकि दूसरे चरण के मतदान में 24 घंटों से भी कम का समय रह गया है तो 'लीजेण्‍ड न्यूज़' ने ब्रजवासियों का मन टटोलने की कोशिश की। इस कोशिश से एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि हेमा मालिनी के तमाम दावों से इतर कृष्‍ण की जन्मस्‍थली के मतदाता उनके काम-काज से कतई संतुष्‍ट नहीं हैं। 
कथित उपलब्‍धियों का दावा, और हकीकत बयां करते लोग 
खुद को कृष्‍ण भक्त बताने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी भले ही अपनी कथित उपलब्‍धियों का कितना ही ढिंढोरा पीटती रहें लेकिन धरातल पर उनका कोई एक काम दिखाई नहीं देता। 
विकास कार्यों के मामले में मथुरा की जनता को दिखाए गए उनके स्‍वप्‍न वास्तव में उनको मिले 'स्‍वप्‍न सुंदरी' के 'टैग' की तरह हैं जिनका वास्‍तविकता से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। 
संभवत: यही कारण है कि आम मतदाता के साथ-साथ भाजपा का कोर वोटर भी हेमा मालिनी को तीसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने से खुश नहीं है। वो बेझिझक कहता है कि हमारा वोट पीएम मोदी तथा सीएम योगी के लिए जाएगा। हेमा मालिनी मात्र प्रतीक हैं, इससे अधिक कुछ नहीं। 
बात चाहे वृंदावन में हर रोज लगने वाले जाम की हो या मथुरा जिला मुख्‍यालय सहित गोवर्धन व बरसाना जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों से जुड़ी यातायात संबंधी अव्‍यवस्‍था की, हेमा मालिनी इन मामूली समस्‍याओं का भी समाधान करने में असफल रहीं। 
हेमा मालिनी के दस साल के संसदीय कार्यकाल में वृंदावन वासियों का तो अपने घर से निकलना तथा घर तक पुहंचना, दोनों कार्य दुष्‍कर हो गए। भारी भीड़ के चलते उनके अपने आराध्‍य बांके बिहारी के दर्शन भी आज उनके लिए दुर्लभ हो चुके हैं। 
बंदरों की बहुतायत वृंदावन वासियों सहित यहां आने वाले दर्शनार्थियों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन चुकी है, किंतु सांसद महोदया ने इस परेशानी को भी कभी गंभीरता से नहीं लिया।   
अपनी सांसद से जनसामान्य का मिलना तो दूर की बात, पार्टी के कार्यकर्ता तक आसानी से नहीं मिल सकते। जाहिर है ऐसे में उनसे किसी जनसमस्‍या के सामधान की उम्मीद करना बेमानी है।  
भाजपा मथुरा के हेमा मालिनी के बारे में विचार 
हेमा मालिनी के दावों और उनके आचार-व्यवहार को लेकर 'लीजेण्‍ड न्यूज़' ने भाजपा के भी एक बड़े वर्ग का मन टटोला तो पता लगा कि अधिकांश लोग खिन्न हैं। उनका तो यहां तक कहना है कि हेमा मालिनी अपने कथित कामों के बूते चुनाव लड़कर देख लें, असलियत उनके सामने होगी। 
भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं की मानें तो उनका मन तभी खट्टा हो गया, जब उन्‍हें पता लगा कि पार्टी ने तीसरी बार हेमा मालिनी को टिकट दे दिया। इन लोगों का दावा है कि उदासीनता के कारण भाजपा का काफी वोटर तो इस बार घर से निकलेगा ही नहीं क्योंकि उसकी मतदान में रुचि नहीं है। हो सकता है कि इसका असर यहां मतदान के प्रतिशत पर भी पड़े। 
यमुना मैया की दुर्दशा एक बड़ा मुद्दा 
कृष्‍ण की पटरानी कहलाने वाली यमुना मैया की दुर्दशा यूं तो एक बड़ा मुद्दा है, और जिसे हर चुनाव में प्रत्येक पार्टी तथा सभी प्रत्याशी भुनाते चले आ रहे हैं लेकिन हेमा मालिनी ने इसे लेकर भी ब्रजवासियों को सबसे अधिक निराश किया। 
केंद्र और प्रदेश में भाजपा की दमदार सरकार होने के बावजूद हेमा मालिनी यमुना में गिरने वाले नालों तक को टैप कराने में असफल रहीं, जिसका ताजा उदाहरण है कल ही एनजीटी द्वारा मथुरा नगर निगम पर सात करोड़ से अधिक का जुर्माना ठोकना। यमुना का प्रदूषण हालांकि इस चुनाव में भी एक मुद्दा है किंतु अब मथुरा की जनता यह मान चुकी है कि यमुना को निर्मल कराना शायद इनके बस में है ही नहीं। इनके बस में है जनता को गुमराह करना और बाकी बचे कामों की फेहरिस्‍त में इसे रखना, यह काम हर उम्मीदवार बखूबी करता रहा है। 
निष्‍कर्ष यही निकलता है कि 2024 का लोकसभा चुनाव मथुरा की जनता के लिए 'मजबूरी का नाम हेमा मालिनी' बनकर रह गया है। हेमा मालिनी की संभावित जीत उनकी अपनी न होकर मोदी-योगी की जीत होगी। फिर भी स्‍वप्न सुंदरी को सपनों में जीने का पूरा अधिकार है। वह चाहें तो मान सकती हैं कि पार्टी के लिए वह चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन कड़वी सच्‍चाई यह है कि तीसरा चुनाव पार्टी उनके लिए लड़ रही है। मतदाताओं के सामने चेहरा भी हेमा मालिनी का नहीं, मोदी-योगी का है, वर्ना हेमा मालिनी को बतौर सांसद पसंद करने वालों की तादाद लाखों तो क्या हजारों की संख्‍या भी पूरी नहीं कर पाएगी। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 

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